एक कसाई था। पिंजरेनुमा जाली में मुर्गो को रखता था। जैसे-जैसे ग्राहक आते, वो एक-एक मुर्गा निकालकर काटकर बेचता जाता। जब भी कसाई पिंजरे में हाथ डालता तो सभी मुर्गे आराम से दाना चुगने में मस्त रहते। कोई शोर शराबा नहीं होता था। मजे की बात देखिये कि वो जब भी मुर्गा हलाल करने के लिये पिंजरे मे हाथ डालता तो केवल वही मुर्गा चिल्लाता था, जिसे कसाई ने पकड़ा होता था। बाकी मुर्गे आराम से दाना चुगने मे व्यस्त रहते थे। यूँ एक-एक करके शाम तक पूरा पिंजरा खाली हो चुका रहता था l उसके एक मित्र ने एक दिन पूछा की तुम्हारे मुर्गे कभी शोर नहीं मचाते ? ऐसा क्यों ?
*वह कसाई बोला। मैं इन मुर्गों को कह देता हूँ कि तुम हिन्दू हो ! तुम कभी मिट नहीं सकते ! तुम आराम से दाना चुगों* !
अगर कोई विपत्ति आएगी , तो तुम्हारे पड़ोसी पर ही आएगी , तुम पर कभी कोई विपत्ति नहीं आएगी !
*ये सदा इसी भ्रम में रहते आये है।*
इसीलिए पहले ईरान, इराक, अफगानिस्तान, बर्मा, नेपाल ,पाकिस्तान, म्यांमार इनके हाथ से निकल गया !
*अब कश्मीर, असम, बंगाल, केरल, कैराना, उत्तर प्रदेश इनके हाथ से निकलने वाला है* , न इन्हें गजवा-ए-हिन्द से कोई अंतर पड़ता है, न लव जिहाद से, न ISIS से, न शरिया से !
*इन्हें बस दाना (धंधा) मिलता रहे…. इनकी जेब पर कोई भार ना आये, सस्ता पेट्रोल, सस्ती दाल, प्याज , चीनी मिलती रहे ….ये कुछ नहीं करेंगे !*
ये मुर्गे असली हिन्दू है !
भारत के जितने भी पवित्र बड़े तीर्थ स्थल हैं उनका भ्रमण करने पर एक बात जो स्पस्ट होती है की ये स्थल धीरे धीरे मुस्लिम बाहुल्य होते जा रहे हैं .इन स्थानों का सारा व्यवसाय, व्यापार ,टूरिस्म, आदि मुस्लिमों ने खींच लिया है .और हिन्दू यहाँ गरीबी रेखा से नीचे जाते जा रहे हैं .उसका प्रमुख कारण है मुस्लिम्स की उनकी कौम के मध्य networking , हमेशा एक मुस्लिम दुसरे मुस्लिम को सपोर्ट करता है कोई काम जो वो स्वयं नहीं कर सकता तो उस काम को करने वाले अपने मुस्लिम भाई को ही refer करता है , जबकि हिन्दू के खून में तो सेकुलर कीड़ा बिलबिला रहा है अतः वो हिन्दू की मदद की बात तो दूर टांग खिचाई में ही लगा रहता है .परिणाम सामने है भारत का तीव्र गति से इस्लामीकरण होता जा रहा है. न्याय तंत्र मुस्लिमों को पूरा संरक्षण देता है ३५ करोड़ की आबादी को अल्पसंख्यक मानता है मुस्लिम से सम्बंधित हर घटना पर स्वतः संज्ञान लेता है हिन्दुओं का क़त्लेआम उसे मजाक लगता है उस पर उसकी आँखें नहीं खुलती .देश की विघटनकारी शक्तियां को अधिकार तो बेहिसाब दे रखे हैं पर कर्तव्य सिर्फ हिन्दुओं के खाते में आये हैं . ,,जागो मेरे हिंदु सनातनी भाई ओ जागो
*एक ज्वलंत प्रश्न*
हम कहाँ के हिन्दू हैं?
हमने,
1. चोटियां छोड़ीं
2. टोपी, पगड़ी छोड़ी,
3. तिलक, चंदन छोड़ा
4. कुर्ता छोड़ा, धोती छोड़ी,
5. यज्ञोपवीत छोड़ा,
6. संध्या वंदन छोड़ा
7. रामायण पाठ, गीता पाठ छोड़ा
8. महिलाओं, लड़कियों ने साड़ी छोड़ी, बिछिया छोड़े, चूड़ी छोड़ी , दुपट्टा, चुनरी छोड़ी, मांग बिन्दी छोड़ी।
9. पैसे के लिये, बच्चे छोड़े (अब आया पालती है)
10. संस्कृत छोड़ी, हिन्दी (भाषा) छोड़ी, (हम अंग्रेज़ी बोलने में गर्व का अनुभव करते हैं।)
11. श्लोक छोड़े, लोरी छोड़ी
12. बच्चों के सारे संस्कार (बचपन के) छोड़े
13. सुबह शाम मिलने पर राम राम, राधे कृष्ण छोड़ी
14. पांव लागूं, चरण स्पर्श, पैर छूना छोड़े
15. घर परिवार छोड़े (अकेले सुख की चाह में संयुक्त परिवार) आदि आदि
अब कोई रीति या परंपरा बची है हमारी?
ऊपर से नीचे तक गौर करिये, हम कहां पर हिन्दू हैं? भारतीय हैं, सनातनी हैं, ब्राह्मण हैं, क्षत्रिय हैं, वैश्य हैं या शूद्र हैं!
*कहीं पर भी उंगली रखकर बता दीजिए कि अपनी हिन्दू-परंपरा को मैंने ऐसे जीवित रखा है।*
जिस तरह से हम धीरे-धीरे बदल रहे हैं, जल्द ही समाप्त भी हो जाएंगे।
●बौद्धों ने कभी सर मुंड़ाना नहीं छोड़ा।
●सिक्खों ने भी सदैव पगड़ी पहनी और 5 ककारों का सदा पालन किया!
●मुसलमानों ने न दाढ़ी छोड़ी, न टोपी और न ही 5 बार नमाज पढ़ना।
●ईसाई भी सैटरडे या संडे को चर्च जरूर जाता है।
फिर हिन्दू अपनी पहचान-संस्कारों से क्यों दूर हुआ?
*कहाँ लुप्त हो गयी – गुरुकुल की शिक्षा, यज्ञ, शस्त्र-शास्त्र, नित्य मंदिर जाने का संस्कार? क्या कोई भी सरकार इसे रोक सकती थीं?
*नहीं, हम स्वयं रुके।*
*हम अपने संस्कारों से विमुख हुए, इसी कारण हम विलुप्त हो रहे हैं। और हम दोषारोपण दूसरों पर कर रहे हैं। यही हमारा दोष है। हम अपना घर सुरक्षित रखने में असफल रहें हैं और धर्मान्तरण को मुद्दा बना रहे हैं।*
अपनी पहचान बनाओ!
*अपने मूल-संस्कारों को अपनाओ!!!*
यह फॉरवर्डेड संदेश है मेरे पास आया और मैंने आगे भेजा। आप भी सभी मित्रों, सगे-संबंधियों, और प्रियजनों को भेजे।
इसका पालन करें व अपने धर्म व संस्कृति को बचाने में सहयोग करें।