✒️सुरेन्द्र चतुर्वेदी*
*आज का मेरा ब्लॉग कांग्रेसी नेता राजेंद्र विधूड़ी जी को समर्पित है। उन्होंने लोक संस्कृति के उन्नयन में अभूतपूर्व भूमिका अदा की है। जिन्हें लोग गालियां बताकर उन्हें अपमानित करने का प्रयास कर रहे हैं ,वे सब लोकोक्तियों में शामिल करने लायक शब्द हैं। उन्होंने राजनीति में नवाचार लाने का जो प्रयास किया है, वह अद्भुत है। भूतो ना भविष्यति। मात्र 7 मिनट में धाराप्रवाह हज़ारों अपशब्दों का प्रयोग!!!वाह..
*मेरा दावा है कि देश का कोई पुरोधा राजनेता ऐसा नहीं कर सकता । पूरे राजस्थान में उनके वायरल हुए ऑडियो की चर्चा है। विधानसभा तक का बेशक़ीमती समय बिधूड़ी जी द्वारा प्रयुक्त “शब्द विन्यास” में बर्बाद किया जा रहा है। यह जनतंत्र के लिए घातक है।*
*भारतीय संविधान में बोलने की आज़ादी का अधिकार अभी भी हर भारतीय के लिए सुरक्षित है। माननीय विधूड़ी जी ने कौनसा अपराध किया है।उन्होंने तो अपने जन्मसिद्ध अधिकार की अग्नि परीक्षा लेने के लिए ही एक थाना अधिकारी को लपकाया है। क्या बात बात में गाली बकने वाले पुलिस वालों को भी अश्लील शब्दों से नवाजा जा सकता है❓️ अब तक पुलिस विभाग ही शानदार अपशब्दों के प्रयोग में सिद्ध हस्त और प्रमाणित माना जाता था।एक मिनट में जो पुलिस वाला सर्वाधिक गालियां बकता था उसे तो विभागीय उत्कृष्टता का नमूना माना जाता था।*
*मेरे पिताजी पुलिस अधिकारी थे और 1 मिनट में 55 अलग अलग प्रजाती की गालियां बक कर अपने आप को सूरमां समझते थे। मुझे लगता है कि “अपशब्द वाचस्पति” राजेंद्र बिधूड़ी ने उनके रिकॉर्ड को अपने विस्मयकारी फ़ोन वार्ता से तहस नहस कर दिया है।*
*गाली बकना देशवासियों को कोई सिखाता नहीं ! इसकी कोई प्रमाणिक शिक्षण संस्था नहीं ! श्रुति परंपरा से यह विद्या सीखी और सिखाई जाती है।यह प्रणाली उपनिषद पाठन की श्रेणी में आती है।*
*मेरा तो मानना है कि गहलोत जी को अपने पूरक बजट में एक “अपशब्द विश्वविद्यालय” खोलने की घोषणा करनी चाहिए! ऐसा विश्वविद्यालय जिसमें विभिन्न भाषाओं में प्रयुक्त होने वाले अपशब्दों को संग्रहित कर पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए। वैसे भी राजनीतिक नियुक्तियों का ऋतु काल चल ही रहा है। ऐसे में परम आदरणीय राजेंद्र बिधूड़ी जैसी महान विभूति को इस विश्वविद्यालय के कुलपति पद से नवाज़ा जाना चाहिए ।वे नई पीढ़ी के आदर्श हैं।*
*राजस्थान में जो गालियां सड़कों चौराहों पर प्रचलित हैं उनको मैं व्यवहारिक और प्रमाणित नहीं मानता । इस विषय मे मेरा शोध कार्य पूरा होने को है।पाठक चाहें तो व्यक्तिगत मिलकर मेरे शोध कार्य को पढ़ के लाभार्थी होने का सुख भोग सकते हैं। समाज में मुश्किल से चौबीस गालियां ही उलट पलट और जोड़ तोड़ कर काम में ली जाती हैं। कुख्यात ऑडियो सुनने के बाद मुझे लगा कि जिन शब्दों का उनमें बड़ी ही शालीनता और ज़िम्मेदारी से उपयोग किया गया वह निश्चित रूप से अजब! ग़ज़ब! कमाल !वाह! ख़ूब ! आश्चर्यजनक! अद्भुत !वंडरफुल ! थंडरफुल और अमेजिंग है। उनका शोध कार्य गालियों की पराकाष्ठा है । सच कहूं तो पराकाष्ठा भी उनसे पानी मांगती हैं ।
*एक पुलिस अधिकारी के सब्र का धनुष बाण तोड़ने के लिए उन्होंने जिस तरह गालियों का क्रमवद्ध उच्चारण किया उसे सुनकर मेरा मन कह रहा है कि परमादरणीय विधूड़ी जी को “अपशब्द वाचस्पति” की पदवी देकर उनका जगह जगह नागरिक अभिनंदन किया जाना चाहिए।*
*मेरा दावा है कि सरकार में क्या पूरी कांग्रेस में,दिल्ली से लेकर जयपुर तक, ऐसा कोई महान नेता नहीं हो सकता जिसकी अभिरुचि इतनी व्यापक और विकसित हो ! आम आदमी तो इतनी गालियां शराब का सेवन करने के बाद भी नहीं कर सकता, जितनी बड़ी सादगी से बिना नशीले पदार्थ का सेवन किए माननीय महोदय ने की।*
*मुझे तो समझ में नहीं आता कि पुलिस विभाग में रहने के बावजूद एक पुलिस अधिकारी ने नेताजी के बार-बार उकसाने पर भी अपनी ज़ुबान क्यों नहीं खोली❓️ थोडे बहुत अपशब्द तो उनके शब्दकोश में भी होंगे!श्रुति परम्परा से मिली जानकारियों के नमूनों को उन्होंने उजागर क्यों नहीं किया❓️
*पुलिस वाला तो किसी की भी गाली सुनकर जवाबी कार्रवाई शुरू कर देता है! हर पुलिस वाला प्रतिक्रियावादी स्वभाव का होता है!गुर्जर साहब ने इतना सब्र कैसे और क्यों किया ❓️ इतने सामाजिक संबोधन सुनकर भी उनकी अंतरात्मा जागृत क्यों नहीं हुई❓️साहब जी उनके पारिवारिक रिश्तों को तार तार करते रहे और उनके मुँह में ताला लगा रहा! इतने अपशब्द सुनने के बाद तो मिट्टी के माधव भी प्रतिक्रिया व्यक्त कर देते हैं!!*
*दोस्तों!! मगर इसे मैं संजय गुर्जर जी के पारिवारिक संस्कारों से जोड़कर देखना पसंद करूंगा। उन्होंने नेताजी को जवाबी कार्रवाई में सिर्फ़ इतना ही कहा कि वे उनके दबाव में कोई ग़लत काम नहीं करेंगे ।*
*परमादरणीय राजेंद्र जी विधूड़ी ने फ़रमाया है कि जो ऑडियो वायरल हुआ है उसमें उनकी आवाज़ नहीं। वो तो गाली बकते ही नहीं। वैसे उनकी बात में दम है।होश में तो कोई राजनेता ऐसी भाषा का प्रयोग नहीं कर सकता ! पद का मद भी इतना तो किसी के सिर चढ़कर नहीं बोल सकता ! ज़रूर उनकी काया में किसी अन्य अश्लील आत्मा ने प्रवेश कर लिया होगा। परकाया प्रवेश के तहत ,कोई और आत्मा उनके जिस्म में आ गई होगी ।जिसे आमतौर पर ऊपर की हवा!चुड़ैल, डांकन, भूत, प्रेत कहा जाता है।आपने देखा होगा कि समाज में कई लोगों की काया पर तरह-तरह के भूत प्रेत कब्जा कर लेते हैं फिर उन्हें मेहंदीपुर वाले बालाजी या अन्य धार्मिक स्थलों पर कूट पीट कर निकलवाया जाता है।
*कांग्रेसी कह रहे हैं कि ऑडियो में गालियां बकने वाली आवाज़ उनकी नहीं है। लोगों द्वारा उसे मान लिया जाना चाहिए ।*
*वयोवृद्ध नेता शांति धारीवाल जी ने कहा है कि ऑडियो की जांच की जाएगी तब कोई कार्रवाई होगी। यह भी अच्छी बात है। आखिर कौन था जो इतनी शानदार धाराप्रवाह गालियां बक गया!!!! हो सकता है आवाज़ किसी मिमिक्री आर्टिस्ट की हो!! जो बिधूड़ी जी की आवाज़ निकाल कर गालियों का वाचन कर बैठा हो!!*
*आवाज़ किसी की भी हो। जिस किसी की भी। उसे सम्मानित ज़रूर किया जाना चाहिए, क्योंकि “मारे जीने माधियो मारे,माधिया ने कुन मारे” इस बार माधिया को मारने का आरोप लगाया गया है। सच्चाई तो सामने आनी ही चाहिए।