अदालत में पेश किया इस्तगासा!*
_*ऑडियो में विधूड़ी की आवाज़ न हो तो वे नौकरी से इस्तीफ़ा देने को तैयार!क्या विधूड़ी आवाज़ उनकी होने पर ले पाएंगे राजनीति से सन्यास ?*_🤨
_*क्या पुलिस के उच्चाधिकारियों से मिल पाएगा संजय को सहयोग ?*_🤔
_*राजनेताओं की सिफ़ारिश पर पुलिस वाले जब तक तबादला लेकर आएंगे,विधूडी जैसे नेता इसी तरह से आएंगे पेश!!!*_💯
*✒️सुरेन्द्र चतुर्वेदी*
*कल विधायक राजेंद्र बिधूड़ी जी को लेकर लिखे ब्लॉग ने मुझे ज़बरदस्त सकारात्मक प्रतिक्रियाएं दीं। सिर्फ़ राजनेताओं और प्रबुद्ध जनों ने ही नहीं बल्कि पुलिस विभाग के दर्जनों उच्चाधिकारियों ने मुझे व्यक्तिगत बधाइयां दीं। यद्यपि मैं ब्लॉग किसी की शाबाशी पाने या अपनी पीठ थपथपाने के लिए नहीं लिखता मगर प्रोत्साहन मिलने पर सच कहने को समर्थन मिलता है।मैं मां सरस्वती का वरद पुत्र हूँ और भाषा के कौतूहल और शब्द चयन की जिम्मेदारी मुझे माँ ने ही वरदान स्वरूप दी है। मैं उनके चरणों में नमन करता हुआ आज का ब्लॉग लिख रहा हूं।*
*कहानी कल वाली ही है। किरदार बदल गया है ।कल कहानी के किरदार विधायक राजेंद्र बिधूड़ी थे तो आज किरदार पुलिस अधिकारी संजय गुर्जर हो गए हैं।*
*संजय गुर्जर से मेरी बात हुई। उन्होंने मेरे ब्लॉग को लेकर धन्यवाद ज्ञापित किया। बातचीत के बाद उन्होंने रावतभाटा जाकर विधायक राजेंद्र बिधूड़ी के ख़िलाफ़ कोर्ट में इस्तगासा पेश किया।
*संजय गुर्जर जो चित्तौड़ के थाना भेंसरोडगढ़ में, थाना अधिकारी के पद पर तैनात थे और विधायक बिधूड़ी के कोपभाजन होकर फ़िलहाल लाइन हाज़िर हैं,अब सीना खोलकर विधायक महोदय के विरुद्ध धर्मयुद्द में खड़े हो गए हैं। धर्मयुध्द शब्द का इस्तेमाल इसलिए कर रहा हूं कि यह मामला सत्य और असत्य के बीच है। संजय गुर्जर एक सभ्य, सुसंस्कृत और शालीन परिवार के सहनशील व्यक्ति हैं। जब फ़ोन पर विधायक महोदय गालियों की बौछार कर रहे थे तब वह बड़ी ही शालीनता से अपने संस्कारों का निर्वाह कर रहे थे। वे चाहते तो गालियों का जवाब गालियों से भी दे सकते थे ,मगर उन्होंने अंत तक भाषा का संयम नहीं खोया।दरअस्ल आदमी की औक़ात आदमी की भाषा बताती है।वही बताती है कि आदमी किस परिवार और संस्कार से परवरिश पाकर बड़ा हुआ है ।नाराज़गी बयान करने के भी अपने सलीके और तरीके होते हैं। अपने शब्द होते हैं। ग़ुस्सा भी सीमाओं में रहकर किया जा सकता है ।ग़ुस्से में कभी-कभी अनायास गाली भी निकल जाती है मगर राजेंद्र बिधूड़ी ने तो जैसे बात कम और गालियां ज़ियादा बककर संजय गुर्जर को सिर्फ़ ज़लील करने के लिए ही फोन किया था।
*ऑडियो सुनने वालों ने यह भी सुना होगा कि जिस समय विधूड़ी गालियों की जुगाली कर रहे थे ,उस समय उनके पास से उकसाने वालों की भी हल्की-हल्की आवाज़ें आ रही थीं। ज़ाहिर है कि कुछ प्रभावशाली लोगों पर अपना रुतबा ग़ालिब करने की नीयत से भी वे गालियां बके जा रहे थे।*
*इधर संजय गुर्जर गाली के जवाब में उन्हें सम्मान देकर सफाईंयां दे रहे थे । वह जितना संयम बरत रहे थे उतनी ही नेता जी की हिम्मत बढ़ती जा रही थी।*
*अब संजय गुर्जर अपने जातीय किरदार में ढल चुके हैं। गुर्जर स्वभाव से ही मार्शल कौम मानी जाती है। मैदान में पराक्रम दिखाना ,पीछे ना हटना उनके संस्कारों में होता है। 👍मगर मज़े की बात ये है कि यहाँ दो गुर्जरों में आमना सामना है।* 🤭
*यह बात सच है कि जिस तरह सचिन पायलट अपने स्वाभिमान और अंतरात्मा की रक्षा के लिए गहलोत से लंबी लड़ाई लड़ रहे हैं। मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी तक पर लात मारकर ,अपने संस्कारों का प्रदर्शन कर रहे हैं ,उसे देखते हुए संजय गुर्जर को भी उनकी वैचारिकता का हिस्सा माना जा सकता है। उन्होंने ताल ठोक कर कोर्ट में इस्तगासा पेश किया है
*इसके बाद उन्होंने मीडिया से जो कहा वह वीडियो आप मेरे फेसबुक अकाउंट पर देख सकते हैं! उन्होंने बिना किसी प्रभाव में आए स्वाभिमान की लड़ाई को अंतिम छोर तक पहुंचाने का संकल्प दोहराया है ।*
*मज़ेदार बात यह है कि राजेंद्र बिधूड़ी राज्य भर में हुई प्रतिक्रिया से घबरा गए हैं। भले ही वह कह रहे हों कि ऑडियो में उनकी आवाज़ नहीं है मगर उनकी अंतरात्मा भी जानती होगी कि ऑडियो में गालियां बकने वाला शख्स कोई दूसरा नहीं ।वही हैं। आज नहीं तो कल यह सच भी सामने आ ही जाएगा। कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए यदि ऑडियो की एफ एस एल जांच करवा ली तो दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा।*
*इधर संजय गुर्जर ने ताल ठोक कर दावा किया है कि ऑडियो में किसी तरह की छेड़छाड़ या काट छांट या तब्दीली नहीं की गई है। उन्होंने अपनी और राजेंद्र बिधूड़ी की आवाज़ को दोनों की ही बताया है। उन्होंने कहा है कि यदि बिधूड़ी यह सिद्ध कर दें कि ऑडियो में आवाज़ उनकी नहीं है तो वह अपनी नौकरी से इस्तीफा दे देंगे। यदि वे इतने ख़ुद्दार हैं तो बिधूड़ी जी को भी इतना ही ख़ुद्दार हो जाना चाहिए। यदि आवाज़ उनकी नहीं है तो उन्हें भी मीडिया के सामने आकर यह कह देना चाहिए कि आवाज़ जांच में उनकी ही निकली तो वे राजनीति से संन्यास ले लेंगे।दरअस्ल भेड़ों की खाल भेड़ों की ही होती है और भेड़ियों की खाल भेड़ियों की ही।इसमें छल कपट ज्यादा नहीं चल पाता।*
*संजय गुर्जर ने कहा है कि उस पर विधूड़ी के लोग तरह-तरह से पीछे हटने का दबाव डाल रहे हैं। प्रलोभन, दबाव और धमकियों से उन्हें रास्ते से हटाए जाने की बात की जा रही है।*
*यद्यपि संजय गुर्जर ने कहा है कि उनका पूरा पुलिस महकमा उनके साथ है मगर सच्चाई मुझे तो कुछ और ही नज़र आ रही है ।महकमा ही यदि उनके साथ होता तो उनका तबादला कहीं और किया जाता !उन्हें लाइन हाज़िर नहीं किया जाता ! तर्क दिया जा रहा है कि स्वयं संजय गुर्जर ने लाइन हाज़िर होने की पेशकश की थी। यह भी हास्यस्पद बात है कि किसी कर्मचारी की इच्छा पर अमल किया जाए! यदि पुलिस के आला अधिकारी विधूड़ी के प्रभाव में नहीं होते और सच का साथ देते तो संजय लाइन हाज़िर तो कम से कम नहीं होते।
*सच्चाई तो है कि पूरे राज्य में राजनेताओं की तरह सरकारी विभागों में भी जातिवाद का ज़हर घुला हुआ है ।पुलिस विभाग भी इससे अछूता नहीं । कहना तो नहीं चाहता वरना कई अधिकारियों का ज़ायका ख़राब हो जाएगा मगर इतना तो मैं कहूंगा ही कि पुलिस विभाग में भी उच्चाधिकारियों और अधीनस्थ कर्मचारियों के तबादले मंत्रियों और विधायकों की सिफ़ारिश पर ही किए जाते हैं। यही वजह है कि पुलिस राजनेताओं के तलवे चाटने को मजबूर हो जाती है। यही वजह है कि राजनेता संजय गुर्जर जैसे पुलिस अधिकारी से निचले स्तर पर आ कर बात करते हैं। पूरे राज्य में यही स्थिति है ।हर अधिकारी राजनेताओं के प्रभाव में है ।अधिकारी कोई मुख्यमंत्री के कहने पर चल रहा है तो कोई गृह मंत्री के कहने पर। कोई विधायकों के कहने पर।*
_*देखिये इस मुल्क़ की कैसी ये हालत हो गई,*_
_*फ़ैसले अंधे हुए बहरी अदालत हो गई.*_
_*मेमने घर से उठा कर भेड़िए जो ले गए,*_
_*देखिए उन भेडियों तक की ज़मानत हो गई*