थानवी के बहाने गहलोत साहब के चहेतों का सच‼️

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मन की बात,तन के साथ*💁‍♂️
_*गहलोत जिस पर कृपालू हो जाएं निहाल कर दें!ज़मीन से आसमान पर पहुंचा दें!!*
_*थानवी का कार्यकाल यदि गहलोत बढ़ा देते हैं तो वेदव्यास और डॉ बाहेती पर मेहरबान क्यों नहीं❓❓️
             *✒️सुरेन्द्र चतुर्वेदी*
                    *हरिदेव जोशी पत्रकारिता संस्थान के कुलपति महामहिम ओम थानवी जी अपने वैभव पूर्ण कार्यकाल  सम्पन्न होने के बाद, आगामी 8 मार्च को, अपनी खूबसूरत जिम्मेदारियों से रिहा हो रहे हैं!  विभिन्न विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की भूमिका निभाते हुए संभवतया वे थक चुके होंगे! कई मामलों में विवादों और आक्षेपों से गुज़रने का दंश झेल चुके थानवी जी!  मुझे नहीं लगता कि आगे अपना कार्यकाल बढ़वाना चाहेंगे!  दोनों हाथों में लड्डू वाले जुमले पर वे यक़ीन नहीं रखते!
                        *पत्रकारिता संस्थान का अलग से जादुई भवन!  करोड़ों की लागत से बनने जा रहा है!  सरकारी घोषणा भी हो चुकी है।…..मगर मुझे नहीं लगता कि थानवी साहब का बजट के प्रति कोई विशेष आकर्षण हो!  वह स्वभाव से निर्मोही हैं! चल अचल दुनिया के प्रति उनकी अतिरिक्त रुचि (हो भी तो ) दिखाई नहीं पड़ती! वे जगत मिथ्या वाले सिद्धांत पर तो कायम नहीं मगर निर्लिप्त भाव उनके चरित्र में शामिल है।*
                     *हां तो मित्रों !! मुझे लग रहा है कि वह अपनी जगह किसी और योग्य व्यक्ति को अपनी राजगद्दी सौंपकर , अख़बारी पत्रकारिता के जरिए फिर से नई पारी खेलेंगे!  यह मेरा कयास है ! मोदी जी की तरह उनके मन में क्या चल रहा है, यह मैं नहीं जानता। हो सकता है वह अपने कार्यकाल को बढ़ाए जाने के लिए तड़प रहे हों!  जुगाड़ लगाकर किसी तरह पद पर कायम रहने के लिए बेहतरीन उपाय भी खोज रहे हों!  जो लोग उनको व्यक्तिगत रुप से जानते हैं उन्हें तो पक्का यक़ीन है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जब तक सत्ता में हैं और आते रहेंगे तब तक थानवी जी उनके समक्ष लाड़ले ही रहेंगे ! वे किसी और पत्रकार को यह अभूतपूर्व सम्मान नहीं देंगे ! ऐसे लोगों का दावा है कि चाहे दुनिया इधर से उधर हो जाए थानवी जी इस संस्थान के कुलपति बने रहेंगे !*
                   *अब इस बात में भी एक लोचा और हो सकता है ! थानवी जी पद पर काबिज़ रहना नहीं चाहते हों और अशोक गहलोत जबरन उनको कुलपति बनाए रखना चाहते हों! इस बात में मुझे ज्यादा दम लग रहा है !*
                                  *मैं गहलोत साहब की आदतों और  फ़ितरत से वाकिफ़ हूँ! वह जिस पर मेहरबान होते हैं पूरी तरह बरसते हैं ! उनका साथ देते हैं ! आखिरी कश तक देते हैं!  उनकी चाहत के हक़दारों पर वे ऐसी ही मेहरबानियां बांटते हैं ,जैसे पुराने ज़माने में बादशाह लोग अपने मुरीदों ! फकीरों ! और गुलामों को अशर्फियां और तमगे बाँटा करते थे।*
                           *मुझे तो अभी तक यह समझ में नहीं आ रहा कि गहलोत साहब ने अभी तक वयोवृद्ध पत्रकार और साहित्यकार आदरणीय वेदव्यास जी को हिंदी साहित्य अकादमी का अध्यक्ष क्यों नहीं बनाया है❓️
                     *हर बार जब उनकी सल्तनत कायम हुआ करती थी उन्हें यथा समय अध्यक्ष पद नवाज़ दिया जाता था ! इस बार पता नहीं क्यों उनकी अनदेखी की जा रही है! समय पर उन्हें एकेडमी का अध्यक्ष बना दिया जाता तो वह 3 साल तक थानवी साहब की तरह सम्मान सुख भोग सकते थे ।*
                         *मैं गहलोत साहब की इस बात का अभी भी कायल हूं कि उन्होंने भले ही वेदव्यास जी को अध्यक्ष ना बनाया हो मगर किसी और को भी उनकी छाती पर मूंग दलने के लिए नहीं बनाया है ।यह भी उनकी सदाशयता ही है कि वह अपने लोगों को तड़पता नहीं  देख सकते।*👍
                                 *यहां मुझे अचानक एक बात और याद हो आई है।अजमेर में एक राजनेता हैं महेंद्र सिंह रलावता! विधानसभा के पूर्व प्रत्याशी!  वे कभी गहलोत की अग्रिम पंक्ति वाले नेता हुआ करते थे ! उन्हें गहलोत का सिपहसालार माना जाता था!  पिछले चुनावों में सचिन पायलट ने उनका “हार्ट प्लांटेशन” यानी ह्रदय परिवर्तन कर दिया ।उनकी आस्था ट्रांसफर हो गई ।उनमें गहलोत की जगह सचिन पायलट के प्रति स्नेह भाव जागृत हो गया ! कोई और पत्रकार होता तो यह कह देता कि रलावता जी ने अपने गले का पट्टा बदल लिया!  मगर मैं रलावता जी को अपना भाई मानता हूँ इसलिए ऐसे शब्द इस्तेमाल नहीं कर सकता ।*
                          *…..तो बत चल रही थी गहलोत जी की! वे रलावता जी को ख़ास तौर से जानते थे और आज भी जानते हैं जब कि रलावता जी उनके पाले में गोलकीपर नहीं हैं।*
                    *फिर भी देखिए उनकी महानता कि वह 2 साल पूर्व जब मुख्यमंत्री के रूप में अजमेर आए तो उन्होंने लंच पर किसी और के यहाँ न जाकर रलावता जी के जंगल स्थित निवास को प्रथमिकता दी।पूरे लाव लश्कर को लेकर उन्होंने उनके यहां भोजन प्रसाद पाया ।डॉ रघु शर्मा को यह बात पसंद नहीं आई ।वह रलावता जी के निवास पर तो गए मगर बाहर ही खड़े रहे ।उन्होंने प्रसाद नहीं पाया।*     *गहलोत साहब ने सचिन पायलट के ख़ेमे का मानकर उनके साथ दुराव नहीं रखा।यह गहलोत साहब की महानता थी या राजनीति मुझे नहीं पता। मगर सोचता हूँ यदि महानता होती तो सत्ता का जो परसाद पिछले दिनों बाँटा गया उसमें कुछ हिस्सा तो रलावता जी का भी बनता ही था।बस तात्कालिक तौर पर उन्होंने रलावता जी को प्रशासन की नज़र में ऊंचा उठा दिया ।
                       *यही उनके चरित्र की ख़ासियत है ।वह समय-समय पर चाहने वालों को नारियल की कतरन बांटते रहते हैं ।*
                            *यहां मैं डॉक्टर श्री गोपाल बाहेती जी का भी जिक्र करना चाहूंगा। पूरी दुनिया जानती है कि अजमेर में अशोक गहलोत के सबसे ख़ास व्यक्ति हैं तो बाहेती जी।जैसे ही गहलोत सत्ता में आए सारी दुनिया को लगा कि समझ लो भाई को ऊंचा पद मिलने वाला है। परन्तु पद की रेवड़ियाँ तो क्या उनको मंगोड़ियाँ तक नहीं मिली हैं।और तो और उनको अभी तक लाड प्यार से भी वंचित किया जा रहा है। राजनीति में रहकर भी वह सन्यास आश्रम में रह रहे हैं ।*
                   *गहलोत जिसे चाहते हैं फर्श से अर्श पर ले  जाते हैं ।अब आप धर्मेंद्र सिंह राठौड़ को ही देख लीजिये! दो साल पहले कोई उनका नामलेवा भी न था!आज वे मिनी सी एम माने जा रहे हैं।
                  *यहां मैं राजेश टंडन जी का नाम नहीं लूंगा!  क्योंकि उनकी योग्यताओं के अनुसार उन्हें अभी भी पद नहीं नवाज़ा गया है ! उनकी लंबी पारी इस बात की गवाह है कि उन्होंने कभी कांग्रेस के साथ दगा नहीं किया!  जिस भी हाल में रहे या रखे गए ,उन्होंने अपना बुरा समय बेहतरीन तरीके से काटा। वसुंधरा के कार्यकाल में उन्होंने अपने दम पर कांग्रेस को जीवंत रखा। शहर के मुद्दे उठाने में आज भी उनका कोई मुकाबला नहीं है। उन्हें सच में कुछ और बेहतर पद मिलना चाहिए था ।
                     *अब जहां तक ओम थानवी का सवाल है आप देख लेना कि वे खुद भले ही कितना भी न चाहें उन्हें गहलोत कुलपति बनाकर ही दम लेंगे*

सुदेश चंद्र शर्मा

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