*महिम्नः पारं ते परमविदुषो यद्यसदृशी*
*स्तुतिर्ब्रह्मादीनामपि तदवसन्नास्त्वयि गिरः*
*अथाऽवाच्यः सर्वः* *स्वमतिपरिणामावधि गृणन्*
*ममाप्येष स्तोत्रे हर निरपवादः परिकरः*
_*हे हर !!! आप प्राणी मात्र के कष्टों को हराने वाले हैं। मैं इस स्तोत्र द्वारा आपकी वंदना कर रहा हूं जो कदाचित आपके वंदना के योग्य न भी हो पर हे महादेव स्वयं ब्रह्मा और अन्य देवगण भी आपके चरित्र की पूर्ण गुणगान करने में सक्षम नहीं हैं। जिस प्रकार एक पक्षी अपनी क्षमता के अनुसार ही आसमान में उड़ान भर सकता है उसी प्रकार मैं भी अपनी यथाशक्ति आपकी आराधना करता हूँ।*_
*अतीतः पंथानं तव च महिमा वाङ्मनसयोः*
*अतद्व्यावृत्त्या यं चकितमभिधत्ते श्रुतिरपि*
*स कस्य स्तोत्रव्यः कतिविधगुणः कस्य विषयः*
*पदे त्वर्वाचीने पतति न मनः कस्य न वचः*
_*हे शिव !!! आपकी व्याख्या न तो मन, ना ही वचन द्वारा ही संभव है। आपके सन्दर्भ में वेद भी अचंभित हैं तथा नेति नेति का प्रयोग करते हैं अर्थात यह भी नहीं और वो भी नहीं… आपका संपूर्ण गुणगान भला कौन कर सकता है? यह जानते हुए भी कि आप आदि व अंत रहित हैं परमात्मा का गुणगान कठिन है मैं आपकी वंदना करता हूँ।*_
*🙏सुरेन्द्र चतुर्वेदी🙏*