सुरेन्द्र चतुर्वेदी*
*लैला मैं लैला, ऐसी हूँ लैला*
*हर कोई चाहे मुझसे मिलना अकेला*
*जिसको भी देखूं दुनिया भुला दूं*
*मजनू बना दूं ऐसी मैं लैला*
*लैला ओ लैला लैला, ऐसी तू लैला*
*हर कोई चाहे तुझसे मिलना अकेला*
*ओ मोहब्बत का जिसको तरीका ना आया।*
*उससे ज़िन्दगी का सलीका ना आया*
*राहे वफ़ा में जान पर जो खेला*
*उसके लिए है ये हसीनों का मेला*
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*मुझे देखकर जो ना देखे किसी को*
*मेरे वास्ते जो मिटा दे खुदी को*
*उसी दीवाने की बनूंगी मैं लैला*
*उसे प्यार दूँगी मैं पेहला पेहला।*
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*जी हाँ, यही गाना सुन रहा था जब एक बेहतरीन पत्रकार का लेख पढ़ कर मेरी पत्नी जल भुन कर मेरी क्लास लेने चली आई। एक ऐसे पत्रकार का ब्लॉग पढ़ आई थी जिसकी क़लम का लोहा देश के दिग्गज नेता, पत्रकार, व्यापारी, समाजसेवी, अधिकारी मानते हैं।जिनकी एक झलक पाने को दुनिया भर के बाहुबली तरसते हैं।*
*मेरे अनुजश्री का लेख पढ़ कर मेरी पत्नी को निहाल हो जाना चाहिए था मगर वो आग बबूला हो रही थी।*😡
*उसने बेहद आक्रामक होकर कहा”देखा !!फिर मित्तल साहब को पायलेट साहब ने खाने पर बुला लिया।चुनिंदा पत्रकारों के साथ!पहले पूनिया और यादव ने बुलाया था!एक तुम हो जो पैंतालीस साल से घर की रोटियाँ तोड़ रहे हो!कोई तुमको महाभोजों में नहीं बुलाता!”*
*पत्नी ने झिड़काया और मित्तल जी का ब्लॉग दिखाया।उन्होंने ब्लॉग में बताया था कि उनको राज्य के स्टार नेता पायलट ने चुनिंदा पत्रकारों की गिनती में शुमार करते हुए खाने पर बुलाया।इससे पूर्व भाजपा के पूनिया ने उनको राज्य के श्रेष्ठ पत्रकारों के साथ विशेष रूप से आमंत्रित किया था।उनको देश की भाजपा के दस प्रबलतम नेताओं में से एक और केंद्रीय मंत्री यादव जी ने अपनी पुत्री के विवाह पर अलग से आमंत्रित किया था ।इसके अलावा भी उनको बड़े बड़े उच्चाधिकारियों से मिलने का न्यौता मिलता रहता है।वे जहाँ जाते हैं लोगों की महफ़िल सज जाती है।उनके लेख पढ़ कर मैं तो अपने मित्रता की उपलब्धियों पर अभिभूत हो रहा था उधर पत्नी मेरे सम्मान को चुनौती दे रही थी।
*”क्या रोज़ रोज़ लोगों के ख़िलाफ़ ब्लॉग लिखते रहते हो।कोई आपको टके में नहीं पूछता।देखो ! अपने मित्र को आपसे उम्र और अनुभव में छोटा है मगर वह कितना लोकप्रिय है।बड़े बड़े लोग उसको खाने पर बुलाते हैं।वे वहाँ पहुंच कर उनका और अपना मान बढाते हैं।एक आप हो जो पैंतालीस बरसों से अपने घर पर बैठे रहते हो।कोई कहीं नहीं बुलाता।*
*पत्नी की बात एक बार तो बहुत कड़वी लगी मगर बाद में जब आत्म विश्लेषण किया तो महसूस हुआ कि मैंने 45 साल की पत्रकारिता में झक ही मारी।किसी ने कभी मिलने नहीं बुलाया।जो आया वो ख़ुद मिलने आया।जितने भी नाम मित्र ने बताए उनमें से लगभग सभी।
*आत्मविश्लेषण के इन लम्हों में ,मैं ख़ुद अपने वज़ूद का मूल्यांकन कर रहा हूँ।ज़रूर मुझमें कोई न कोई कमी है कि बड़ी बड़ी हस्तियां चाह कर भी मुझे मिलने के लिए नहीं बुलातीं।पूनिया!पायलेट!यादव! पाटनी ! या ऐसे ही नामों वाले मंत्री ! उद्योगपति ! भारतीय सेवाओं के अधिकारी ! अभिनेता! समाज के कथित मार्गदर्शक! जानते तो सभी हैं!क़लम का लोहा भी मानते हैं !मगर कोई चुनिंदा पत्रकारों की हैसियत से भोज महोत्सव में आमंत्रित नहीं करता।
*आख़िर ऐसी क्या कमी है मुझमें जो हस्तियां मुझे बुलाने लायक नहीं समझतीं या ऐसी क्या ख़ूबियाँ हैं मेरे मित्र में जो हर कोई उनसे मिलने को लालायित रहता है।
*पत्नी ने मुझे रुआंसा देख कर कहा”अब! ये क्या मुँह लटका कर बैठे हो! अपनी आदत को तो देखो! सच कहने के साहस पर हर किसी की फीत उतारने में नहीं चूकते!पत्रकार कम साहित्यकार ज़ियादा बन जाते हो।जब तक सच के चेहरे पर चढ़े मुखौटे को नौंच न लो तब तक चैन से नहीं बैठते।कोई समझौता करने के संदेश भिजवाए तो बिदक कर उसे और उग्रता से बजाने पर उतर जाते हो।प्रलोभन दे तो कहते हो ईश्वर ने दाल रोटी दे रखी है,भिष्ठा नहीं खाऊंगा!धमकाए तो कहते हो मौत एक ही बार होगी ।चाहे कुत्ते के काटने से हो।अब सोचो कौन तुमको चुनिंदा लोगों में शुमार करेगा❓️खाने में सबसे पीछे रहते हो ! घुर्राने में सबसे आगे ! सोचो ऐसे में कौन तुमको महाभोजों में दावत देगा❓️❓️
*पत्नी की कड़वी बातें ज़हरीली लग रही थीं।वह कमबख्त बोले जा रही थी।बोली “भोजों “को तो तुम “गिद्ध भोजन” कहते हो। कोई पत्रकार किसी के लिए मीठा लिख दे तो उसे जनसंपर्क अधिकारी कह देते हो।पैंतालीस साल में दिग्गजों को घर पर चाय पानी पिलाकर मेरी बारह बजाते रहे मगर किसी के बुलाने पर उसके दरवाज़े पर नहीं गए।अब सोच रहे हो कि भला उसके कपड़े तुमसे ज़ियादा रंग रंगीले क्यों हैं?”
*पत्नी को बोलता छोड़ कर मैं घर की छत पर चला गया।घण्टों बैठ कर आत्म चिंतन किया।ऐसे में कई चेहरे सामने आए।डॉ रघु शर्मा का भी।राजस्थान विश्वविद्यालय में साथ पढ़ते थे । घनिष्ठ मित्र भी थे, मगर उसके विरुद्ध सच लिख कर अपना मित्र नहीं रहने दिया। रोज़ रोज़ के सच को पढ़ कर उसने भी हार कर मुक़द्दमा दर्ज़ करवा दिया।फिर भी मैंने अपने लहज़े में कोई अंतर नहीं आने दिया।शायद कहीं उसमें मित्रता बाक़ी होगी सो उसने मामला वापस ले लिया। एफ आर लग गई।
*भाजपा के पूनिया हों या कांग्रेस के पायलेट सभी ने न जाने कितने लोगों के माध्यम से मैत्री निवेदन भिजवाए मगर साफ़ कह दिया जिसे मिलना हो आ जाए।घर के दरवाज़े खुले हैं।और सच कहूँ आपसे कि बहुत से झक मरवा कर आए भी।
*ज़िले में हर बार न जाने कितने आई ए एस,आई पी एस ,आर ए एस,आर पी एस और अन्य तमगेदार अधिकारी आते हैं चले जाते हैं।सबसे सीधी जान पहचान भी बनी रहती है मगर कोई माई का लाल यह नहीं कह सकता कि उसने कभी मेरी शक़्ल देखी हो या जिसके साथ सेल्फ़ी खींच कर मैं धन्य हो गया होऊं।
*सच को हमेशा बढ़ावा दिया और झूंठ को बेनक़ाब करके दम लिया।अब यह मेरी पत्नी की नज़र में दो कौड़ी का काम है तो है।
*चाटुकारिता मेरे संस्कारों में नहीं है तो नहीं है।कोई अच्छा है,सच्चा है तो सर और क़लम उसके चरणों मे रखी है वरना अपना कटा हुआ सर उसकी थाली में हाज़िर है।
*जानता हूँ कि मेरी यही ख़ुद्दारी मुझे कभी भोजों के लिए आमन्त्रित नहीं करती।…….और फिर ज़िले में कितने पत्रकार ऐसे हैं जिनको बड़े बड़े राजनेता या अधिकारी घास डालते हैं❓️जो दिग्गज लोगों के भोज में बुलाए जाते है❓️क्या वे महाभोजों में नहीं बुलाए जाने से बौने हो जाते हैं❓️
*दोस्तो!मेरे ज़िले के 99 फ़ीसदी पत्रकार नेक और सच्चे पत्रकार हैं।उनकी सत्यनिष्ठा या ईमानदारी पर कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता।उनकी लेखन प्रतिभा का लोहा भी लोग मानते हैं।अख़बारों में ऐसे कई पत्रकार तो महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारियाँ भी निभा रहे हैं।समाज में उनका नाम बड़े सम्मान से भी लिया जाता है,हाँ मगर उनको पूनिया जी ,यादव जी,पायलट जी, गहलोत जी और न जाने कितने जी महाभोज के लायक नहीं समझते।*
*जैसा कि बुलाए जाने वाले पत्रकार बड़ी शान से लिखते हैं कि चुनिंदा पत्रकारों में उनको बुलाया गया,तो उनको बता दूं कि निंदा और चुनिंदा भाई बहन हैं।आप निंदा नहीं करेंगे तो चुनिंदा हो जाएंगे।
*मित्रों! ख़ामियों को छुपाओगे तो चुनिंदा हो जाओगे ।ख़ूबियों को मक्खन लगा कर पेश करोगे तब भी चुनिंदा हो जाओगे मगर सच को जैसा है वैसा पेश किया तो मेरे जैसे रह जाओगे।💯सोच लो आपको किस श्रेणी में सम्मान पाना है।आम पत्रकारों जैसा ! खास जैसा ! या खासमखास जैसा!?