*मेरी सूखी टहनियों को काटने वाले ये सुन,*_
_*जड़ मेरी ज़िन्दा रही तो फिर हरा हो जाऊँगा।*
_*महिला पुलिस अधिकारी ने कहा मेरे साथ कुछ नहीं हुआ।दवाब में लिखवाया गया।*
_*अब कोर्ट करेगी दूध का दूध,पानी का पानी!*
*✒️सुरेन्द्र चतुर्वेदी*
*शिवभक्त समाजसेवी और भाजपा के पूर्व नेता भंवर सिंह पलाड़ा के सफ़ेद लिबास पर लगाई गई गंदगी के धब्बे ! अब सच्चाई के साबुन से धुलकर साफ़ होने शुरू हो गए हैं। राजनीतिक विद्वेषता से उनके विरुद्ध की गई साज़िश की परतें भले ही पूरी तरह नहीं खुली हों, लेकिन पलाड़ा जी की शिव भक्ति अब रंग ला रही है ।😊*
*भीलवाड़ा की महिला पुलिस सब इंस्पेक्टर ने लिखित में बयान देकर अपने साथ हुई किसी भी ज़्यादती को नकार दिया है। उसने साफ़ तौर पर ताल ठोक कर यह बयान दे दिए हैं कि उसके साथ किसी ने कभी कोई दुष्कर्म नहीं किया। उच्च स्तरीय जांच में उसने यह भी साफ़ कर दिया है कि उसके मना करने के बावजूद चालबाज़ी से एफ आई आर दर्ज़ कर दी गई थी।यह मामला आगे क्या मोड़ लेगा यह अदालत तय करेगी। फ़िलहाल पलाड़ा के चरित्र पर लगे दाग धुलने की दिशा में चल निकले हैं।*👍
*मामला इतना विवादास्पद नहीं होता ! यदि महिला सब इंस्पेक्टर की उस अर्जी पर भीलवाड़ा पुलिस के आला अधिकारी ध्यान दे लेते जिसमे उसने एफ आई आर दर्ज़ नहीं करवाए जाने की प्रार्थना की थी।*
*यहां अजीबो-ग़रीब बात यह रही कि पुलिस प्रायःऐसे कई मामलों में पीड़िताओं द्वारा दर्ज़ सच्चे प्रार्थना पत्रों पर संज्ञान ही नहीं लेती ।पीड़िताएँ पुलिस थानों के चक्कर काटती रहती हैं ।कभी पुलिस के आला अधिकारियों की लिखित सिफारिश पर मामले दर्ज़ हो पाते हैं, तो कभी अदालत में दर्ज़ परिवाद के ज़रिए । वहीं इस मामले में पुलिस ने पीड़िता के मना करने के बावजूद मामला दर्ज़ कर लिया। पुलिस ने एक बार भी यह नहीं सोचा कि मामले के पीछे कोई दूसरा पहलू भी हो सकता है।*😣
*पलाड़ा कोई मामूली नेता नहीं ! यह सोचे बिना उन्होंने जिस तरह मामला दर्ज़ करने में हड़बड़ी दिखाई , उसे देखकर लगता है कि भीलवाड़ा के कुछ पुलिस अधिकारी धार कर बैठे थे कि सच्चाई क्या है ,जांच में ज़ाहिर होती रहेगी , फिलहाल तो मामला दर्ज़ करके मीडिया को सौंप दिया जाए ।*🙄
*पुलिस को मामला दर्ज़ ही करना था तो तब ही कर लिया होता ,जब यह पुलिस अधिकारियों के नोटिस में कई महीनों से ले आया गया था। भीलवाड़ा के निवर्तमान पुलिस कप्तान विकास शर्मा के संज्ञान में भी मामला लाया गया था ,तब पुलिस मामला दर्ज़ इसलिए नहीं कर रही थी कि मामले की सच्चाई को समझ रहे थे। उस वक़्त भी कुछ पुलिस अधिकारी मामले को पका रहे थे। महिला पुलिस अधिकारी को बाक़ायदा उकसाया जा रहा था।उस पर तरह-तरह के दवाब डाले जा रहे थे। कुछ जातिवादी चेहरे इसके लिए बाक़ायदा सक्रिय थे। समाजसेवी पलाड़ा उनकी आंख की किरकिरी बने हुए थे। येन केन प्रकारेण मामला दर्ज़ किए जाने की साज़िश चल रही थी। …मगर आटा गीला था…रोटी कच्ची थी.. महिला अधिकारी मामले से पीछा छुड़ाना छाती थी… वह मामला दर्ज़ ही नहीं करवाना चाहती थी…वह नहीं जानती थी कि उसी के कुछ अधिकारी गरम तवे पर चढ़ी रोटी को जला कर ही दम लेंगे। मामला अब धीरे धीरे साफ़ हो रहा है।
*महिला अधिकारी ने उच्च स्तरीय जांच में साफ़ कह दिया है कि कुछ अधिकारियों ने अतिरिक्त दबाव डालकर, उसे घेरने का प्रयास किया था। उस पर रिपोर्ट लिखने का दबाव बनाया गया था। उसके साथ किसी ने कुछ नहीं किया।एफ आई आर में जितने नाम लिखे गए हैं उनमें कोई भी दोषी नहीं ।ऐसे में मामला अदालत में बहुत जल्दी साफ़ हो जाएगा। पुलिस के दबाव में दर्ज़ हुई एफ.आई.आर अदालत निरस्त तो कर सकती है। मगर जिन लोगों की छवि को सामाजिक प्रताड़ना से गुज़रना पड़ा उनका क्या होगा❓उन पुलिस अधिकारियों का क्या होगा जो अनावश्यक रूप से मोहरा बना कर निलंबित कर दिए गए❓️*
*पुलिस को सही दिशा में कदम उठाने चाहिए। दूध का दूध पानी का पानी करने के लिए अदालती निर्देशों का पालन करना चाहिए। मामले की तह तक जाना चाहिए। इस मामले में जो अधिकारी निलंबित कर दिए गए उन्हें बहाल किया जाना चाहिए। चाहिए क्या करना ही पड़ेगा!!जब मामला अदालत में जाकर आधार हीन हो जाएगा तब इसके अलावा कोई चारा ही नहीं बचेगा।*💁♂️
*एडिशनल एसपी संजय गुप्ता से हुई बातचीत में उन्होंने कहा कि कानून स्वतंत्र है। उन्हें पूरा यक़ीन है कि जो सत्य है वह सामने आएगा! अनावश्यक रूप से हुई परेशानी से उन्हें मुक्ति मिल जाएगी !*💯
*फिलहाल मामला कानूनी दांव पेंचों से गुज़र रहा है। वह क्या मोड़ लेगा यह कानूनी पंडित बेहतर जानते होंगे ! एक आम आदमी की हैसियत से मैं तो यही कहूंगा :-
_*मेरी सूखी टहनियों को काटने वाले यह सुन !
_*जड़ मेरी जिंदा रहीं तो फिर हरा हो जाऊंगा